भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किसको फुर्सत है दुनिया में कौन बुलाने आएगा / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र" }} {{KKCatGhazal}} <poem> किसको फुर्सत …) |
|||
पंक्ति 14: | पंक्ति 14: | ||
पाप धुलेंगे कैसे यारो कौन नहाने आएगा | पाप धुलेंगे कैसे यारो कौन नहाने आएगा | ||
− | इस बस्ती को छोड़ चला | + | इस बस्ती को छोड़ चला मैं तू जाने और तेरा काम |
सांकल तेरे दरवाज़े की कौन बजाने आएगा | सांकल तेरे दरवाज़े की कौन बजाने आएगा | ||
इन अंधियारी गलियों को इक मैं ही रौशन करता था | इन अंधियारी गलियों को इक मैं ही रौशन करता था | ||
दिन ढलते ही दीपक "आज़र" कौन जलाने आएगा </poem> | दिन ढलते ही दीपक "आज़र" कौन जलाने आएगा </poem> |
06:52, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण
किसको फुर्सत है दुनिया में कौन बुलाने आएगा
बात -बात पे रुठोगे तो कौन मनाने आएगा
जब भी मैं आवाज़ हूँ देता आनाकानी करते हो
मेरे बाद बता दो तुमको कौन बुलाने आएगा
गंगा जी माँ कहते सब जल भी गंदा करते हैं
पाप धुलेंगे कैसे यारो कौन नहाने आएगा
इस बस्ती को छोड़ चला मैं तू जाने और तेरा काम
सांकल तेरे दरवाज़े की कौन बजाने आएगा
इन अंधियारी गलियों को इक मैं ही रौशन करता था
दिन ढलते ही दीपक "आज़र" कौन जलाने आएगा