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"आप की संगत का ये’ अंदाज़ मन को भा गया / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर

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बचते-बचते फिर भी मैं, पानी से धोका खा गया  
 
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हम मोहब्बत में, शिकस्ता पा हुए तो ग़म नहीं
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हम मुहब्बत में, शिकस्ता पा हुए तो ग़म नहीं
 
रफ्ता-रफ्ता दोस्तों ,तुम को तो चलना आ गया
 
रफ्ता-रफ्ता दोस्तों ,तुम को तो चलना आ गया
  
 
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10:35, 16 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण


आप की संगत का ये’ अंदाज़ मन को भा गया
गर्दिश-ए-दौराँ में हमको, मुस्कुराना आ गया

टूट कर बरसा जो बादल, घुप अँधेरा छा गया
था उजाला दिन का लेकिन, रौशनी को खा गया

रेज़ा-रेज़ा कातिलों ने, जिस्म मेरा कर दिया
खून बिखरा रंग बनकर, वादीयाँ चमका गया

आग से तो बच गया मैं ,मौत आनी थी मगर
बचते-बचते फिर भी मैं, पानी से धोका खा गया

हम मुहब्बत में, शिकस्ता पा हुए तो ग़म नहीं
रफ्ता-रफ्ता दोस्तों ,तुम को तो चलना आ गया