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"न किसी का घर उजडता, न कहीं गुबार होता / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर
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कोई डर के झूठ कहता, न ही सत्य को छिपाता | कोई डर के झूठ कहता, न ही सत्य को छिपाता | ||
− | जो स्वार्थ | + | जो स्वार्थ जिंदगी का, न गले का हार होता |
मैं खुद अपनी सादगी में, कभी हारता न बाज़ी | मैं खुद अपनी सादगी में, कभी हारता न बाज़ी |
12:00, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण
न किसी का घर उजड़ता, न कहीं गुबार होता
सभी हमदमों को ऐ दिल, जो सभी से प्यार होता
ये वचन ये वायदे सब, कभी तुम न भूल पाते
जो यकीन मुझपे होता, मेरा एतबार होता
मैं मिलन की आरजू को, लहू दे के सींच लेता
ये गुलाब जिंदगी का, जो सदा बहार होता
कोई डर के झूठ कहता, न ही सत्य को छिपाता
जो स्वार्थ जिंदगी का, न गले का हार होता
मैं खुद अपनी सादगी में, कभी हारता न बाज़ी
तेरी बात मान लेता, जो मैं होशियार होता