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"मजा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर
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लटों को जो तूने यूं झटका दिया | लटों को जो तूने यूं झटका दिया |
12:19, 16 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
मज़ा आ रहा है ग़ज़ल में तेरी
लगे जैसे मुख में हो मीठी डली
हवा आंधी बन-बन के कैसे चली
उड़ा ले गई मिट्टी धूलों भरी
लटों को जो तूने यूं झटका दिया
पता बेखबर किस पे बिजली गिरी
निगाहों में कैसी ये मदहोशियां
हमें मार डालें न बे मौत ही
पुकारा जो तुमने तो मैं आ गया
मेरी बात "आज़र" न तुमने सुनी