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"जलते बदन हैं दोनो पैदा है होती आग / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर

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जलते बदन हैं दोनो पैदा है होती आग
 
जलते बदन हैं दोनो पैदा है होती आग
जितना बुझाओ इसको बढती है उतनी आग
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जितना बुझाओ इसको बढ़ती है उतनी आग
  
 
कहते जलन है किसको पूछो तो हाल उससे
 
कहते जलन है किसको पूछो तो हाल उससे

12:40, 16 सितम्बर 2011 का अवतरण


जलते बदन हैं दोनो पैदा है होती आग
जितना बुझाओ इसको बढ़ती है उतनी आग

कहते जलन है किसको पूछो तो हाल उससे
जब भूख से लगी हो इस पेट में भी आग

बारिश में भीगे तन ये लहरों में डूब जाएं
पानी से भी न बुझती रहती है प्यासी आग

काया बनी है अपनी इन पांच तत्वों से ही
आकाश,मिट्टी,पानी शामिल हवा भी आग

"आज़र" कमाल है ये नफ़रत कि आग भी
जितना बुझाया इसको उतनी ही भड़की आग