"ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे / इक़बाल" के अवतरणों में अंतर
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रहेगी क्या आबरु हमारी जो तू यहाँ बेक़रार होगा । | रहेगी क्या आबरु हमारी जो तू यहाँ बेक़रार होगा । | ||
− | मैं जुल्मत-ए-शब में लेके निकलूंगा अपने दरमांदा<ref>थका<ref> कारवां को | + | मैं जुल्मत-ए-शब में लेके निकलूंगा अपने दरमांदा<ref>थका</ref> कारवां को |
शरर फसां होगी आह मेरी, नफ़स मेरा शोला बार होगा । | शरर फसां होगी आह मेरी, नफ़स मेरा शोला बार होगा । | ||
08:10, 17 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
ज़माना आया है बेहिजाबी<ref>खुलापन </ref> का, आम दीदार-ए-यार होगा
सुकूत<ref>चुप्पी</ref> था परदादार जिसका वो राज़ अब आशकार <ref>प्रत्यक्ष </ref> होगा ।
गुज़र गया अब वो दौर साक़ी, कि छुप के पीते थे पीने वाले
बनेगा सारा जहां मयख़ाना हर कोई बादह्ख़ार<ref>शराब पीने वाला </ref> होगा
कभी जो आवारा-ए-जुनूँ थे वो बस्तियों में फिर आ बसेंगे
बरहना-पाई<ref>पाँव का </ref> वही रहेगी, मगर नया ख़ारज़ार <ref>रेगिस्तान, कम पेड़ों वाली जगह</ref> होगा ।
सुना दिया गोश-ए-मुन्तज़िर <ref>सुनने की प्रतीक्षा</ref> को हिजाज़<ref>अरब का प्रांत जहाँ मक्का और मदीना हैं</ref> का ख़ामोशी ने आखिर
जो अहद सहराइओं से बाँधा गया था फिर उस्तवार<ref>ठोस, मजबूत </ref> होगा ।
निकल के सहरा से जिसने रोमां की सल्तनत को उलट दिया था
सुना है ये क़ुदसियों <ref>हदीस बोलने वाले</ref> से मैने, वो शेर फ़िर होशियार होगा ।
किया मेरा तज़किरा<ref>ज़िक्र </ref> जो साक़ी ने बादख़ारों की अंजुमन में
पीर-ए-मयख़ाना सुन के कहने लगा, मुंहफट है ख़ार होगा ।
दियार-ए-मग़रिब<ref>पश्चिमी देशों </ref> के रहने वालों, ख़ुदा की बस्ती दुकाँ नहीं है
खरा जिसे तुम समझ रहे हो, ओ अब ज़र-ए-कम अयार होगा ।
तुम्हारी तहज़ीब<ref>संस्कृति </ref> अपने ख़ंजर से आप ही ख़ुद्कुशी करेगी
जो शाख़े-नाज़ुक़<ref>नाज़ुक टहनी </ref> पे आशियाना बनेगा, नापाएदार<ref>कमज़ोर </ref> होगा ।
सफ़ीना-ए-बर्ग-ए-गुल बना लेगा काफ़िला नूर-ए-नातवाँ<ref>कमज़ोर</ref> का
हज़ार मौजों की हो कशाकश मगर ये दरिया से पार होगा ।
चमन में लाला<ref>फूल या चिड़िया</ref> दिखाता फिरता है दाग़ अपना कली-कली को
ये जानता है कि इस दिखावे से दिलजलों में शुमार होगा ।
जो एक था ऐ निगाह तूने हमें हज़ार करके दिखाया
यही अगर कैफ़ियत हे तेरी तो किसे ऐतबार होगा ।
कहा जो कुमरी से मैने एक दिन यहाँ के आज़ाद पाबकिल हैं
तो गुन्चे<ref>कली</ref> कहने लगे हमारे चमन का ये राज़दार होगा ।
ख़ुदा के बन्दे तो हैं हज़ारों बनो में फिरते हैं मारे-मारे
मैं उसका बन्दा बनूँगा जिसको ख़ुदा के बन्दों से प्यार होगा ।
ये रस्म-ए-बज़्म-ए-फ़ना है ऐ दिल, गुनाह है जुम्बिश<ref>हलचल</ref>-ए-नज़र की
रहेगी क्या आबरु हमारी जो तू यहाँ बेक़रार होगा ।
मैं जुल्मत-ए-शब में लेके निकलूंगा अपने दरमांदा<ref>थका</ref> कारवां को
शरर फसां होगी आह मेरी, नफ़स मेरा शोला बार होगा ।
नहीं है ग़ैर जुनूत कुछ भी मुद्दआ तेरी ज़िंदगी का
तो इक नफ़स में मिटना तुझे मिसाल-ए-शरार होगा ।
न पूछ इक़बाल का ठिकाना, अभी वही कैफ़ियत है उसकी
कहीं सर-ए-रहगुज़ार बैठा सितमकश-ए-इंतिज़ार होगा ।