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"दिन बीता लो आई रात /वीरेन्द्र खरे अकेला" के अवतरणों में अंतर

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18:14, 17 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

दिन बीता लो आई रात
जीवन की सच्चाई रात
 
अक्सर नापा करती है
आँखों की गहराई रात
 
सारी रात पे भारी है
शेष बची चौथाई रात
 
मेरे दिन के बदले फिर
लो उसने लौटाई रात
 
नखरे सुब्ह के देखे हैं
कब हमसे शरमाई रात
 
बिस्तर-बिस्तर लेटी है
कितनी है हरजाई रात
 
सोए नहीं 'अकेला' तुम
फिर किस तरह बिताई रात