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"मान्यवरों मै भी कुछ बोलूँ अगर इजाज़त हो / वीरेन्द्र खरे अकेला" के अवतरणों में अंतर

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18:41, 17 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

मान्यवरो मैं भी कुछ बोलूं अगर इजाज़त हो
आज ज़ुबां के बंधन खोलूं अगर इजाज़त हो

लौट रहे बहती गंगा से नहा नहा कर सब
हाथ ज़रा क्या मैं भी धोलूं अगर इजाज़त हो

राग तुम्हारा मस्त कर रहा है तबियत मेरी
इस पर मैं थोड़ा सा डोलूं अगर इजाज़त हो

देकर मुझ भूखे को भोजन बाबू पुण्य किया
अब मैं उस पत्थर पर सोलूं अगर इजाज़त हो

सपनों के बाज़ार में चलने से इन्कार कहाँ
पर मैं अपनी जेब टटोलूं अगर इजाज़त हो

मैंने ये कब बोला तुमसे कोई शिकायत है
बस अपनी क़िस्मत पर रोलूं अगर इजाज़त हो