भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फिर बढ़ाना द्वार पर पाबंदियां /वीरेन्द्र खरे अकेला" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=शेष बची चौथाई रा…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:49, 17 सितम्बर 2011 का अवतरण
फिर बढ़ाना द्वार पे पाबंदियाँ
पहले बनवा लो ये टूटी खिड़कियाँ
दौड़ने के गुर सिखाए किसलिए
पाँव में गर डालनी थीं बेड़ियाँ
वक़्त पर बिजली तो अक्सर ही गई
काम आईं घासलेटी डिब्बियाँ
देखकर मुझको ख़ुशी के मूड में
चढ़ गईं ज़ालिम समय की त्यौरियाँ
प्रार्थना करिए दरख़्तों के लिए
हैं सक्रिय छैनी, हथौड़े, आरियाँ
यार तू भी दूध का धोया कहाँ
हैं अगर मुझमें बहुत सी ख़ामियाँ
इस महीने सारा वेतन खा गए
बच्चों के बस्ते, किताबें, कॉपियाँ
बिन तुम्हारे ज़िन्दगी बीती है यूँ
ज्यौं फटे कंबल में बीतें सर्दियाँ