भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दुआ / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=त्रिपुरारि कुमार शर्मा }} {{KKCatKavita}} <Poem> घर से निकला त…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:58, 17 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
घर से निकला तो माँ ने मुझसे कहा-
जाओ, जाते हो मगर
बात इतनी ज़हन से चिपका लो
जब कभी तुम फलक से गुज़रो तो
संभल के चलना और कुछ भी मत छूना
चाँद-तारों की वादी आएगी
लगा जो पाँव का ठोकर तो टूट जायेंगे
बड़े नुकीले हैं ये चुभ भी सकते हैं
और जब धूप जाग जाए तभी सफर करना
कि धूप में ही बसर करते हैं ठंडे साये
अब कहाँ छाँव है मिलने वाली
खुदा करे की महफूज़ रहो हर ग़म से
मेरी दुआएं तेरे साथ है बेटा...