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"रूह की छत पर आओ / त्रिपुरारि कुमार शर्मा" के अवतरणों में अंतर

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23:59, 17 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

तुम छत पर अक्सर दिखाई देती हो
या फिर देखती रहती हो दरीचे से कभी
उस वक़्त जब पानी बरसता रहता है
शायद तुम्हें बरसात पसन्द बहुत है

मेरी रूह की छत पर आओ जो कभी
या मुझमें देखो मेरी पलकों पे बैठ कर
सीने में बरसती है तेरे ख़्याल की बूँदें
मैं भीगता रहता हूँ तुम्हारी अदाओं से