भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"किस तरह पूरी हो घन की आरज़ू / वीरेन्द्र खरे अकेला" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=शेष बची चौथाई रा…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:38, 18 सितम्बर 2011 का अवतरण
किस तरह पूरी हो घन की आरज़ू
और ही कुछ है पवन की आरज़ू
मोम सा नाज़ुक बदन है आपका
छोड़ भी दीजे तपन की आरज़ू
इक परिंदा पंख अपनी बेचकर
ले के आया है उड़न की आरज़ू
काग के कोसे नहीं हाथी मरे
ख़ूब कर मेरे पतन की आरज़ू
रोशनी घर-घर में भरने की तड़प
देखिए तो इक किरन की आरज़ू
बेटा पी.एच.डी. था चपरासी हुआ
अब है बेटी के लगन की आरज़ू
डर है तू मुझसे ख़फ़ा हो जायेगा
कैसे कह दूँ अपने मन की आरज़ू