भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"क्या पता था यह सियासी खेल खेला जायेगा /वीरेन्द्र खरे अकेला" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=शेष बची चौथाई रा…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
12:50, 18 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
क्या पता था यह सियासी खेल खेला जाएगा
जीत कर विश्वास गड्ढे में ढकेला जाएगा
सुन रहे हैं मीठेपन का गुर सिखाने के लिए
बाग़ में सीताफलों के इक करेला जाएगा
काम क्या तुझसे पड़ा तू तो गवर्नर हो गया
माफ़ कर दे अब तेरा नखरा न झेला जाएगा
हसरतें अपनी दबा रक्खें कहाँ तक हम ग़रीब
यार कब बस्ती से अपनी उठ के मेला जाएगा
आग को बदनाम करने के तहत उस पर अभी
तेल मिट्टी का बता कर जल उड़ेला जाएगा
माँ ने बापू से कहा-‘होगी कहीं कवि-गोष्ठी
बस वहीं होगा कहाँ अपना ‘अकेला’ जाएगा