भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चुप रहेंगे ग़लत पर कदाचित नहीं /वीरेन्द्र खरे अकेला" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=शेष बची चौथाई रात /…)
 
(कोई अंतर नहीं)

13:20, 18 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

चुप रहेंगे ग़लत पर कदाचित नहीं
ठीक से तुम अभी हमसे परिचित नहीं

बिन बुलाए ही हम आए जिसके लिए
बज़्म में शख़्स वो ही उपस्थित नहीं

ऐसा सत्कार मित्रों अखरता बहुत
जिसमें अपनत्व होता समाहित नहीं

लोक लज्जा का कुछ ध्यान रखते हैं हम
मत समझ तेरे प्रति हम समर्पित नहीं

यार सन्यासियों का है डेरा यहाँ
आ चलें ये जगह कुछ सुरक्षित नहीं

उसका जीवन कठिन है बहुत आजकल
झूठ, छल-छद्म में जो प्रशिक्षित नहीं

ऐ ‘अकेला’ न ईमान बेचा गया
वरना सुविधाओं से रहते वंचित नहीं