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17:09, 18 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

आँसुओं को बवाल समझा गया
कब यहाँ दिल का हाल समझा गया

अपने लोगों की थीं करामातें
जिनको दुश्मन की चाल समझा गया

वो ख़फ़ा हैं कि घूसखोरी को
कैसे फोकट का माल समझा गया

हम जो सम्हले तो उँगलियाँ उट्ठीं
गिर पड़े तो कमाल समझा गया

साध ली फिर जवाब पर चुप्पी
कैसे समझें सवाल समझा गया

काम आए ये फ़ालतू काग़ज़
मेरी पॉकिट में माल समझा गया

तेरे बिन दिन सदी से गुज़रे हैं
लम्हे लम्हे को साल समझा गया