भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"फुटकर शेर /निश्तर ख़ानक़ाही" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निश्तर ख़ानक़ाही |संग्रह= }} Category:ग़ज़ल <poem> मैं भ…) |
|||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
[[Category:ग़ज़ल]] | [[Category:ग़ज़ल]] | ||
<poem> | <poem> | ||
+ | किस-किस के घर का नूर थी मेरे लहू की आग | ||
+ | जब बुझ गया तो फिर से जलाया गया मुझे | ||
+ | |||
मैं भी तो इक सवाल था हल ढूँढते मेरा | मैं भी तो इक सवाल था हल ढूँढते मेरा | ||
ये क्या कि चुटकियों में उड़ाया गया मुझे | ये क्या कि चुटकियों में उड़ाया गया मुझे | ||
पंक्ति 12: | पंक्ति 15: | ||
सुबह मिलते हैं मुझे अख़बार में लिपटे हुए | सुबह मिलते हैं मुझे अख़बार में लिपटे हुए | ||
− | हवाएँ गर्द की सूरत उड़ा रहीं हैं मुझे | + | हवाएँ गर्द की सूरत उड़ा रहीं हैं मुझे |
न अब ज़मीं ही मेरी है ,न आसमान मेरा | न अब ज़मीं ही मेरी है ,न आसमान मेरा | ||
धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया | धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया | ||
हम डूबने चले थे कि दरिया उतर गया | हम डूबने चले थे कि दरिया उतर गया | ||
+ | |||
+ | सारे जग क़ी प्यास बुझाना इतना आसाँ काम है क्या | ||
+ | पानी को भी भाप में ढल कर बादल बनना पड़ता है | ||
+ | |||
+ | कहता किसी से क्या क़ी कहाँ घूमता फिरा | ||
+ | सब लोग सो गए तो मैं चुपके से घर गया | ||
+ | |||
<poem> | <poem> |
13:59, 19 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
किस-किस के घर का नूर थी मेरे लहू की आग
जब बुझ गया तो फिर से जलाया गया मुझे
मैं भी तो इक सवाल था हल ढूँढते मेरा
ये क्या कि चुटकियों में उड़ाया गया मुझे
अब ये आलम है कि मेरी ज़िंदगी के रात-दिन
सुबह मिलते हैं मुझे अख़बार में लिपटे हुए
हवाएँ गर्द की सूरत उड़ा रहीं हैं मुझे
न अब ज़मीं ही मेरी है ,न आसमान मेरा
धड़का था दिल कि प्यार का मौसम गुज़र गया
हम डूबने चले थे कि दरिया उतर गया
सारे जग क़ी प्यास बुझाना इतना आसाँ काम है क्या
पानी को भी भाप में ढल कर बादल बनना पड़ता है
कहता किसी से क्या क़ी कहाँ घूमता फिरा
सब लोग सो गए तो मैं चुपके से घर गया