भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दिन खनकता है / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Om nishchal (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ओम निश्चल |संग्रह= }} {{KKCatNavgeet}} <Poem> दिन खनकता है सुबह …) |
(कोई अंतर नहीं)
|
23:27, 19 सितम्बर 2011 का अवतरण
दिन खनकता है
सुबह से शाम कंगन-सा।
खुल रहा मौसम
हवा में गुनगुनाहट और नरमी
धूप हल्केु पॉंव करती
खिड़कियों पर चहलकदमी
खुशबुओं-सी याद
ऑंखों में उतरती है
तन महकता है
सुबह से शाम चंदन-सा।
मुँह अँधेरे छोड़ कर
अपने बसेरे
अब यहॉं तब वहॉं चिड़ियॉं
टहलती हैं दीठ फेरे
तितलियों-से क्षण
पकड़ में पर नहीं आते
मन फुदकता है
सुबह से शाम खंजन-सा।
चुस्कियों में चाय-सा
दिन भी गया है बँट
दोपहर के बाद होती
खतों की आहट
रंग मौसम के सुहाने
लौट आए हैं
लौटता अहसास फिर-फिर
शोख बचपन-सा।
दिन खनकता है
सुबह से शाम कंगन-सा।