भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हिरना आँखें / कैलाश गौतम" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कैलाश गौतम }} <poem> हिरना आँखें झील-झील गलियारे पिय...) |
|||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=कैलाश गौतम | |रचनाकार=कैलाश गौतम | ||
}} | }} | ||
+ | {{KKCatNavgeet}} | ||
<poem> | <poem> | ||
हिरना आँखें झील-झील | हिरना आँखें झील-झील | ||
गलियारे पिया असाढ़ में, | गलियारे पिया असाढ़ में, | ||
गलियारे की नीम, निमौली- | गलियारे की नीम, निमौली- | ||
− | मारे पिया असाढ़ | + | मारे पिया असाढ़ में ।। |
मेहँदी पहन रही पुरवाई | मेहँदी पहन रही पुरवाई | ||
पंक्ति 14: | पंक्ति 15: | ||
हम अधखुले किवाड़ों से | हम अधखुले किवाड़ों से | ||
आग लगाकर भाग रहे | आग लगाकर भाग रहे | ||
− | आवारे पिया असाढ़ | + | आवारे पिया असाढ़ में ।। |
दूर कहीं बरसा है पानी | दूर कहीं बरसा है पानी | ||
सोंधी गंध हवाओं में | सोंधी गंध हवाओं में | ||
− | सिर धुनती | + | सिर धुनती लौटेंगी लहरें |
कल से इन्हीं दिशाओं में | कल से इन्हीं दिशाओं में | ||
रेत की मछली छू जाती | रेत की मछली छू जाती | ||
− | अनियारे पिया असाढ़ | + | अनियारे पिया असाढ़ में ।। |
दिन भर देते हाथ बुलाते | दिन भर देते हाथ बुलाते | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 29: | ||
आज मधुर बौछारों में | आज मधुर बौछारों में | ||
इंद्रधनुष की छाँह, और | इंद्रधनुष की छाँह, और | ||
− | उद्गारे पिया असाढ़ | + | उद्गारे पिया असाढ़ में ।। |
</poem> | </poem> |
08:39, 20 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
हिरना आँखें झील-झील
गलियारे पिया असाढ़ में,
गलियारे की नीम, निमौली-
मारे पिया असाढ़ में ।।
मेहँदी पहन रही पुरवाई
उतरी नदी पहाड़ों से
देख रहे हैं उड़ते बादल
हम अधखुले किवाड़ों से
आग लगाकर भाग रहे
आवारे पिया असाढ़ में ।।
दूर कहीं बरसा है पानी
सोंधी गंध हवाओं में
सिर धुनती लौटेंगी लहरें
कल से इन्हीं दिशाओं में
रेत की मछली छू जाती
अनियारे पिया असाढ़ में ।।
दिन भर देते हाथ बुलाते
टीले हरे कछारों में
देह हुई है महुवर जैसी
आज मधुर बौछारों में
इंद्रधनुष की छाँह, और
उद्गारे पिया असाढ़ में ।।