भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जम्हूरी मुल्क में तुम हिटलरी क़ायम करोगे क्या/वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=सुबह की दस्तक / व…)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:59, 20 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण


जम्हूरी मुल्क़ में तुम हिटलरी क़ायम करोगे क्या
तुम्हारी बात ना मानी तो गोली मार दोगे क्या

ज़रा ग़ुस्सा हो कम उसका तो फिर समझाइशें देना
भरी बरसात में बाहर की दीवारें रंगोगे क्या

तुम्हारा कृष्ण सा वैभव मेरी हालत सुदामा सी
अगर मैं सामने आऊँ मुझे पहचान लोगे क्या

मैं अपने कान को अब और ज़हमत दे नहीं सकता
ज़ुबां अपनी ज़रा सी देर क़ाबू में रखोगे क्या

जब अपने लोग ही खिल्ली उड़ाने पे हों आमादा
तब ऐसे में ‘अकेला’ तुम ज़माने को कहोगे क्या