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भर गया | भर गया | ||
− | + | तेज़ाब-सा कोई | |
− | + | ख़ुशनुमा माहौल में आकर । | |
नींद में | नींद में | ||
− | हर | + | हर वक़्त चुभता है |
− | + | आँधियों का शोर- सन्नाटा | |
कटघरों में ज्यों- पड़े सोए | कटघरों में ज्यों- पड़े सोए | ||
− | + | क़ैदियों की पीठ पर चाँटा | |
तैरता | तैरता | ||
दु:स्वप्न-सा हर दृश्य | दु:स्वप्न-सा हर दृश्य | ||
− | पुतलियों के ताल में | + | पुतलियों के ताल में अक्सर । |
सड़क पर | सड़क पर | ||
− | मुस्तैद संगीनें | + | मुस्तैद संगीनें-- |
बंद अपने ही घरों में हम | बंद अपने ही घरों में हम | ||
− | आदमी की | + | आदमी की शक़्ल में क़ातिल |
कौन पहचाने किसी का ग़म | कौन पहचाने किसी का ग़म | ||
हर गली | हर गली | ||
हर मोड़ पर बैठी | हर मोड़ पर बैठी | ||
− | मौत अपनी | + | मौत अपनी बाँहे फैला कर । |
− | + | बर्फ़-सा | |
− | जमता हुआ हर | + | जमता हुआ हर शख़्स |
− | चुप्पियों में | + | चुप्पियों में क़ैद हैं साँसें |
समय की नंगी सलीबों पर | समय की नंगी सलीबों पर | ||
− | गले में अँटकी हुई | + | गले में अँटकी हुई फाँसें |
लिख रहे हैं | लिख रहे हैं | ||
− | लोग | + | लोग कविताएँ |
− | नींद की फिर | + | नींद की फिर गोलियाँ खाकर । |
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11:47, 21 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
भर गया
तेज़ाब-सा कोई
ख़ुशनुमा माहौल में आकर ।
नींद में
हर वक़्त चुभता है
आँधियों का शोर- सन्नाटा
कटघरों में ज्यों- पड़े सोए
क़ैदियों की पीठ पर चाँटा
तैरता
दु:स्वप्न-सा हर दृश्य
पुतलियों के ताल में अक्सर ।
सड़क पर
मुस्तैद संगीनें--
बंद अपने ही घरों में हम
आदमी की शक़्ल में क़ातिल
कौन पहचाने किसी का ग़म
हर गली
हर मोड़ पर बैठी
मौत अपनी बाँहे फैला कर ।
बर्फ़-सा
जमता हुआ हर शख़्स
चुप्पियों में क़ैद हैं साँसें
समय की नंगी सलीबों पर
गले में अँटकी हुई फाँसें
लिख रहे हैं
लोग कविताएँ
नींद की फिर गोलियाँ खाकर ।