भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"जब हवा सीटियाँ बजाती है / ओम निश्चल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Om nishchal (चर्चा | योगदान) |
Om nishchal (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=ओम निश्चल | |रचनाकार=ओम निश्चल | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=शब्द सक्रिय हैं |
}} | }} | ||
{{KKCatNavgeet}} | {{KKCatNavgeet}} |
15:00, 21 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण
दूर तक
बस्तियों सिवानों में
गन्ध फ़सलों की महमहाती है,
जब हवा सीटियाँ बजाती है ।
एक सहलाव भरी गंध लिये आता है
आता है बालियाँ लिए मौसम
धान का हरापन ठिठकता है,
महक उठता है ख़ुशबुओं से मन
पत्तियों में छिपी कहीं कोयल
धूप के गीत-गुनगुनाती है,
जब हवा सीटियाँ बजाती है ।
एक खुलती हुई हँसी जैसी
फूटती है उजास मेड़ों से,
दीखते हैं दरख़्त फैले हुए
चाँदनी के हसीन पेड़ों से,
आँख से
ओट हो गईं सुधियाँ
पास फिर लौट-लौट आती हैं,
जब हवा सीटियाँ बजाती है ।
पाट चौड़े हुए नदी के फिर
फिर हवाएँ हुईं सरस-शीतल,
मुट्ठियों से शहद छिड़कता है
द्वार पर सन्त-सा खड़ा पीपल,
दिन रुई-सा
इधर-उधर उड़ता
रात अल्हड़-सी मुसकराती है,
जब हवा सीटियाँ बजाती है ।