भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"बात बोले हो बिलकुल खरी/वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=सुबह की दस्तक / वीरेन्…)
 
(कोई अंतर नहीं)

18:42, 23 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण


बात बोले हो बिलकुल खरी
ज़िन्दगी है बड़ी दुख भरी

एक कथरी मयस्सर है बस
वो ही चादर है वो ही दरी

हँस के मैं टालता ही रहा
वक्त करता रहा मसखरी

जा गवाहों पे कुछ ख़र्च कर
और बेदाग़ हो जा बरी

कैसे बीहड़ में उलझा दिया
अब न फ़रमाइए रहबरी

डिगरियाँ हैं ये किस काम की
मिल न पाए अगर नौकरी

एक सौ का धरा हाथ पे
जब वो देने लगा अफ़सरी

राजनेता को क्या चाहिए
कुर्सी, चमचे, सुरा, सुन्दरी