भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वक्त ढल पाया नहीं है शाम का/वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=सुबह की दस्तक / व…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:52, 23 सितम्बर 2011 का अवतरण
वक़्त ढल पाया नहीं है शाम का
चल पड़ा है सिलसिला आराम का
काम का आगाज़ हो पाया नहीं
ख़ौफ़ ले डूबा बुरे अंजाम का
प्यास दो ही घूँट में बुझ जाएगी
सारा दरिया है मेरे किस काम का
मयकशों की लिस्ट में मेरा शुमार
नाम तक लेता नहीं मैं जाम का
है नज़र बेताब क़ासिद के लिए
मुन्तज़िर हूँ मैं तेरे पैग़ाम का
सोशलिस्टों की मशक्कत रायगाँ
फ़र्क़ मिट पाया न ख़ासो-आम का
ऐ 'अकेला' काम का कुछ भी नहीं
अब तो जो भी है वो है बस नाम का