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"तुमने ही मुंह मोड़ लिया मन की आशाएं जाएँ कहाँ /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

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19:24, 23 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

तुमने ही मुँह मोड़ लिया, मन की आशाएँ जायें कहाँ
पतवारें ही दुत्कारें तो फिर नौकाएँ जायें कहाँ

छपने की सुविधा से वंचित मंचों का भी साथ नहीं
आवारा ना भटकें तो मेरी कविताएँ जायें कहाँ

कौन मिलेगा हमसे अच्छा शुभचिंतक इनको जग में
हम कवियों के पास न भटकें तो विपदाएँ जायें कहाँ

हम ख़ुद भूले अपना रस्ता, हम ख़ुद असमंजस में हैं
आप हमीं से पूछ रहे हैं “ये बतलाएँ जायें कहाँ”

सच कहना क्या सीखा हमने, सब संबंधी ग़ैर हुए
कैसे ये तनहाई काटें अब हम आएँ जायें कहाँ