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"दिल्ली / नवनीत पाण्डे" के अवतरणों में अंतर

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<poem>दिल्ली
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आंखे देखती हैं- दिल्ली
 
आंखे देखती हैं- दिल्ली
 
कान सुनते हैं- दिल्ली
 
कान सुनते हैं- दिल्ली

04:44, 28 सितम्बर 2011 के समय का अवतरण

दिल्ली
केवल नाम नहीं है किसी शहर का
पहचान है एक देश की
प्राण है एक देश का
यह अलग बात है-
दिल्ली में एक नहीं
कई दिल्लियां हैं-
पुरानी दिल्ली, नई दिल्ली,
दिल्ली कैंट, दिल्ली सदर आदि- आदि
हर दिल्ली के अपने रंग,
अपने कानून- क़ायदे
आपकी दिल्ली, मेरी दिल्ली
ज़ामा मस्ज़िद वाली दिल्ली
बिड़ला मंदिर वाली दिल्ली
शीशगंज गुरूद्वारे वाली दिल्ली
चर्चगेट वाली दिल्ली
साहित्य अकादमी वाली दिल्ली
हिन्दी ग्रंथ अकादमी वाली दिल्ली
एनएसडी वाली दिल्ली
जवाहरलाल नेहरु विष्वविद्यालय वाली दिल्ली
महात्मा गांधी विष्वविद्यालय वाली दिल्ली
दिल्ली की सोच में
दिल्ली दिल वालों की है
दिल्ली से बाहर की खबर के अनुसार
दिल्ली दिल्ली वालों की है
दिल्ली किसकी है?
इस प्रश्न का सही- सही उत्तर
स्वयं दिल्ली के पास भी नहीं है
वह तो सभी को अपना मानती है
कश्मीर से कन्याकुमारी तक
पहुंचता है दिल्ली का अख़बार
हर गली, गांव, शहर की दीवारें उठाए हैं
दिल्ली के इश्तहार
आंखे देखती हैं- दिल्ली
कान सुनते हैं- दिल्ली
होंठ बोलते हैं- दिल्ली
सब करते हैं-
दिल्ली का एतबार
दिल्ली का इंतज़ार
दिल्ली की जयकार
पैरों में पंख लग जाते हैं
सुनते ही दिल्ली की पुकार
दुबक जाते हैं सुनते ही
दिल्ली की फटकार
दिल्ली की ललकार
सब को जानती है दिल्ली
सब को छानती है दिल्ली
सब को पालती है दिल्ली
सब को ढालती है दिल्ली
दिल्लीः
अर्थात् प्रेयसी का दिल
दिल्लीः
अर्थात् प्रेमी की मंजिल
दिल्लीः
अर्थात् सरकार
दिल्लीः
अर्थात् दरबार।