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चींटी किसकी / कविता वाचक्नवी

16 bytes added, 23:34, 27 सितम्बर 2011
वर्तनी व फॉर्मेट सुधार
आँगन में
पूछा चिल्ला कर
‘माँ" माँ ! चींटी राम की है या रावण की?"
गिरे फंदे उठाती
दादी ने
कह दिया - ‘राम की।’ " राम की ",
गर्मी में भागती चींटियों को
इतना पानी पिलाया मैंने
वे डूब गई।गईं ।
अकस्मात अकस्मात् एक दिन‘रावण की’ " रावण की " कहा माँ ने
और पैर पटक-पटक
मार दिया मैंने उन्हें।उन्हें ।
हे राम! तुम्हारे नाम
कितनी चींटियाँ मारीं हमने
और रावण!तुम्हारे नाम जाने कितनी!
बेकसूर थीं सारी
राम और रावण से जोड़
कभी प्यार से
कभी घृणा से
मारी गईं।गईं । फंदे उठाने वालो ! सोचो तो !!
फंदे उठाने वालो!
सोचो तो!!
</poem>
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