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Kavita Kosh से
वर्तनी व फॉर्मेट सुधार
आँगन में
पूछा चिल्ला कर
गिरे फंदे उठाती
दादी ने
कह दिया - ‘राम की।’ " राम की ",
गर्मी में भागती चींटियों को
इतना पानी पिलाया मैंने
वे डूब गई।गईं ।
और पैर पटक-पटक
मार दिया मैंने उन्हें।उन्हें ।
हे राम! तुम्हारे नाम
कितनी चींटियाँ मारीं हमने
और रावण!तुम्हारे नाम जाने कितनी!
बेकसूर थीं सारी
राम और रावण से जोड़
कभी प्यार से
कभी घृणा से
मारी गईं।गईं । फंदे उठाने वालो ! सोचो तो !!
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