भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जी में आया है, मुझे आज वो, कर जाने दे / सतीश शुक्ला 'रक़ीब'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna | रचनाकार=सतीश शुक्ला 'रक़ीब' | संग्रह = }} {{KKCatGhazal}} <poem> जी में आ…)
(कोई अंतर नहीं)

18:10, 2 अक्टूबर 2011 का अवतरण



जी में आया है, मुझे आज वो, कर जाने दे
अपनी ज़ुल्फ़ें मेरे शानों पे बिख़र जाने दे

जिस्म की खुश्बू मेरी बादे-सबा पहुँचा दे
मुझसे पहले मेरे आने की ख़बर जाने दे

शाख से कर न जुदा सब्र भी कर ऐ गुलचीं
हुस्न कलियों का ज़रा और निखर जाने दे

उम्र भर वादा वफ़ा करके हुआ क्या हासिल
मैक़सी के लिए वादे से मुक़र जाने दे

दो घड़ी और ठहर, देख लूँ , चेहरा तेरा
नक्श का अक्श, मेरे दिल में उतर जाने दे

जीते जी मार ही डाला है मुझे यारों ने
अब तो तस्वीर भी चूहों से कुतर जाने दे

तेरे आगोश में, मैं ख़ुद ही चला आऊँगा
आज, अरमानों की कश्ती को, 'भंवर' जाने दे

तुझ से मैं रह के जुदा, ज़िन्दगी कैसे कर लूँ
जान भी, जिस्म से, ऐ जाने जिगर, जाने दे

रूठे दिलबर दो यक़ीनन ही मना लेगा 'रक़ीब'
फूटी तक़दीर तो एक बार संवर जाने दे