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"फ़ुर्सत के पल निकाल कर, मिलता ही कौन है / पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर

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अपनो में अपना दोस्तों, अपना ही कौन है
 
अपनो में अपना दोस्तों, अपना ही कौन है
  
अरसा गुज़र गया, हमे ख़ुद से मिले हुए
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अरसा गुज़र गया, हमें  ख़ुद से मिले हुए
 
इक हमख़याल आज-कल, मिलता ही कौन है
 
इक हमख़याल आज-कल, मिलता ही कौन है
  

20:53, 2 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

फ़ुर्सत के पल निकाल कर, मिलता ही कौन है
अपनो में अपना दोस्तों, अपना ही कौन है

अरसा गुज़र गया, हमें ख़ुद से मिले हुए
इक हमख़याल आज-कल, मिलता ही कौन है

दिन भर रहे वो साथ यह कोशिश तमाम की
सूरज के जैसा,शाम तक, ढलता ही कौन है

नंगे बदन को ढांप दे, ग़ुरबत की जात को
चादर भी इस मिज़ाज़ से, बुनता ही कौन है

जो भी मिला है हमसफ़र, राहों में रह गया
धूमिल पथों पे साथ अब, चलता ही कौन है