भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हाथ हरियाली का इक पल में झटक सकता हूँ मैं / नोमान शौक़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Thevoyager (चर्चा | योगदान) छो |
Thevoyager (चर्चा | योगदान) छो |
||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
आग बन कर सारे जंगल में भड़क सकता हूँ मैं | आग बन कर सारे जंगल में भड़क सकता हूँ मैं | ||
− | मैं अगर तुझको मिला सकता हूँ | + | मैं अगर तुझको मिला सकता हूँ मेहर-ओ-माह से |
अपने लिक्खे पर सियाही भी छिड़क सकता हूँ मैं | अपने लिक्खे पर सियाही भी छिड़क सकता हूँ मैं | ||
14:15, 3 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
हाथ हरियाली का इक पल में झटक सकता हूँ मैं
आग बन कर सारे जंगल में भड़क सकता हूँ मैं
मैं अगर तुझको मिला सकता हूँ मेहर-ओ-माह से
अपने लिक्खे पर सियाही भी छिड़क सकता हूँ मैं
इक ज़माने बाद आया हाथ उसका हाथ में
देखना ये हैं मुझे कितना बहक सकता हूँ मैं
आईने का सामना अच्छा नहीं है बार-बार
एक दिन अपनी भी आँखों में खटक सकता हूँ मैं
कश्तियाँ अपनी जलाकर क्यों तुम आए मेरे साथ
कह रहा था मात खा सकता हूँ थक सकता हूँ मैं
है सारे तसलीम1 ख़म2 तेरी हुकूमत के हुज़ूर
एक हद तक ही मगर पीछे सरक सकता हूँ मैं
अब इसे गर्काब3 करने का हुनर भी सीख लूँ
इस शिकारे को अगर फूलों से ढक सकता हूँ मैं
1- स्वीकार
2- मुड़ाव, कमी
3- डुबाना