भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"टूट-फुट / निशान्त" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita‎}}<poem>काम चाहे कितना ही पक…)
 
(कोई अंतर नहीं)

04:34, 7 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

काम चाहे
कितना ही पक्का
पुख्ता हो
बिगाड़ आ ही
जाता है उसमें
निभाता नहीं वह
उम्र भर साथ
मसलन
घिस जाते हैं
मैन गेट के
‘गेटवाल’
गल जाती है
बिजली की तारें
उखड़ जाता है
पलस्तर
यहां तक कि
अच्छे खासे
रिश्तों में भी
आ जाती है
दरार
कुछ भी नहीं होता
ऐसा
जो हमें कर दे
पूर्ण निश्चिंत