भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"महकी महकी फ़िज़ा थी वो लड़की/वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Tanvir Qazee (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=सुबह की दस्तक / व…) |
(कोई अंतर नहीं)
|
16:02, 7 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
महकी महकी फ़िज़ा थी वो लड़की
सुब्ह की इन्तहा थी वो लड़की
उसकी ख़ुशियों का सिलसिला था मैं
मेरे दुख की दवा थी वो लड़की
आईना होके पत्थरों से लड़ी
वक्त का हौसला थी वो लड़की
सच को हिम्मत के साथ कहती थी
इसलिए बेहया थी वो लड़की
उसको मंज़िल ही मान बैठा था
क्या हसीं मरहला थी वो लड़की
किसकी चलती है वक्त के आगे
मत कहो बेवफ़ा थी वो लड़की
ऐ ‘अकेला’ बदल गया सब कुछ
क्या थे हम और क्या थी वो लड़की