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16:02, 7 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

महकी महकी फ़िज़ा थी वो लड़की
सुब्ह की इन्तहा थी वो लड़की

उसकी ख़ुशियों का सिलसिला था मैं
मेरे दुख की दवा थी वो लड़की

आईना होके पत्थरों से लड़ी
वक्त का हौसला थी वो लड़की

सच को हिम्मत के साथ कहती थी
इसलिए बेहया थी वो लड़की

उसको मंज़िल ही मान बैठा था
क्या हसीं मरहला थी वो लड़की

किसकी चलती है वक्त के आगे
मत कहो बेवफ़ा थी वो लड़की

ऐ ‘अकेला’ बदल गया सब कुछ
क्या थे हम और क्या थी वो लड़की