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"एक तिनका / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’" के अवतरणों में अंतर
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मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ, | मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ, |
15:26, 9 अक्टूबर 2011 का अवतरण
मैं घमंडों में भरा ऐंठा हुआ,
एक दिन जब था मुंडेरे पर खड़ा।
आ अचानक दूर से उड़ता हुआ,
एक तिनका आँख में मेरी पड़ा।
मैं झिझक उठा, हुआ बेचैन-सा,
लाल होकर आँख भी दुखने लगी।
मूँठ देने लोग कपड़े की लगे,
ऐंठ बेचारी दबे पॉंवों भागने लगी।
जब किसी ढब से निकल तिनका गया,
तब 'समझ' ने यों मुझे ताने दिए।
ऐंठता तू किसलिए इतना रहा,
एक तिनका है बहुत तेरे लिए।