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"मुद्दत-सी हो गई ,गम-ए-दर्द को सम्भाले/पुरुषोत्तम अब्बी "आज़र"" के अवतरणों में अंतर

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तौफीक दे तू  मौला ,या  एसा  निजाम दे- दे  
 
तौफीक दे तू  मौला ,या  एसा  निजाम दे- दे  
ग़ुरबत में जी रहे जो , उनको मिलें निवाले  
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भूखे को दे सँकू  मैं  दो  वक्त  के निवाले  
  
 
हमको कसम तुम्हारी ,कुछ तो यकीन कर लो  
 
हमको कसम तुम्हारी ,कुछ तो यकीन कर लो  

08:55, 12 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

मुद्दत-सी हो गई , गम-ए-दर्द को सम्भाले
हमको भी यारो कोई , अपने गले लगाले

हिचकी न थम रही है ,पलकों से निकले आँसू
यादों में हमने इनको , रक्खा हुआ था पाले

तौफीक दे तू मौला ,या एसा निजाम दे- दे
भूखे को दे सँकू मैं दो वक्त के निवाले

हमको कसम तुम्हारी ,कुछ तो यकीन कर लो
हम भी न उफ़ करेंगे , चाहे कोई सताले

"आज़र"करें क्या शिकवा , उनको नहीं है चिंता
अब जी क्या करेंगे , हमको खुदा उठा ले