भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"घर का धुआं / निशान्त" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=निशान्त |संग्रह= }} {{KKCatKavita}}<poem>सामने ए...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
04:38, 21 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
सामने एक घर में
उठ रहा है धुआं
घरवालों की
आँखों और सांसो के लिए
बुरा ही सही
मुझे तो लग रहा है
बड़ा भला
धुआं उठ रहा है
तो लगता है
घर में कुछ रंध रहा है
दाल-भात
उत्सव लिए कोई पकवान
या पशुओं का चाटा-बांटा
बड़े घरों में कहाँ रहा अब धुआं
उनकी खुशहाली तो प्रकट कर देती
उनकी चमक-दमक ही
गरीब घरों की तो अब भी
धड़कन है धुआं।