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"आह को चाहिये इक उम्र असर होने तक / ग़ालिब" के अवतरणों में अंतर
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गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर<ref>अन्गारों का नृत्य</ref> होने तक! | गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर<ref>अन्गारों का नृत्य</ref> होने तक! | ||
− | गम-ए-हस्ती<ref>जीवन का दुख</ref> का "असद" | + | गम-ए-हस्ती<ref>जीवन का दुख</ref> का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज |
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक! | शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक! | ||
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11:52, 25 अक्टूबर 2011 का अवतरण
आह को चाहिए एक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तॆरी ज़ुल्फ कॆ सर<ref>विजय, सुलझना</ref> होने तक!
दाम हर मौज में है हल्का-ए-सदकामे-नहंग
देखे क्या गुजरती है कतरे पे गुहर होने तक!
आशिकी सब्र तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूं खून-ए-जिगर होने तक!
हमने माना कि तगाफुल ना करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको खबर होने तक!
परतवे-खुर से है शबनम को फ़ना की तालीम
में भी हूँ एक इनायत की नज़र होने तक!
यक-नज़र बेश नहीं, फुर्सते-हस्ती गाफिल
गर्मी-ए-बज्म है इक रक्स-ए-शरर<ref>अन्गारों का नृत्य</ref> होने तक!
गम-ए-हस्ती<ref>जीवन का दुख</ref> का "असद" कैसे हो जुज-मर्ग-इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक!
शब्दार्थ
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