भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सुकूं की अब निशानी ही नहीं है /वीरेन्द्र खरे 'अकेला'" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' |संग्रह=सुब...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

17:06, 25 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण

सुकूं की अब निशानी ही नहीं है
तेरे बिन ज़िन्दगानी ही नहीं है

है आटा गूंधने की बेक़रारी
मगर अफ़सोस पानी ही नहीं है

समूची पोलियो से ग्रस्त भी है
व्यवस्था अपनी कानी ही नहीं है

ये कैसा फूल है, कहता है मुझको
महक अपनी लुटानी ही नहीं है

सही समझाने वाले तो बहुत थे
किसी ने बात मानी ही नहीं है

मैं ‘कृषि ऋण माफ़’ की सूची में शामिल
मेरे घर तो किसानी ही नहीं है

प्रगति का जोश तो देखो ‘अकेला’
कहानी में कहानी ही नहीं है