"देह का सिंहनाद / कुबेरदत्त" के अवतरणों में अंतर
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अपमानित, तिरस्कृत शव... | अपमानित, तिरस्कृत शव... | ||
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शव भी कहाँ- | शव भी कहाँ- | ||
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जली हडडियों की केस प्रापर्टी, | जली हडडियों की केस प्रापर्टी, | ||
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मुर्दाघर में अधिक-अधिक मुर्दा होती... | मुर्दाघर में अधिक-अधिक मुर्दा होती... | ||
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चिकित्सा विज्ञान के | चिकित्सा विज्ञान के | ||
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शीर्ष पुत्रों की अनुशोधक कैंचियों से बिंधी, | शीर्ष पुत्रों की अनुशोधक कैंचियों से बिंधी, | ||
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विधि-विधान के जामाताओं का | विधि-विधान के जामाताओं का | ||
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:सन्निपात झेलती... | :सन्निपात झेलती... | ||
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:ढोती | :ढोती | ||
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:शोध पर शोध पर शोध- | :शोध पर शोध पर शोध- | ||
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: यह तिरस्कृत देह... | : यह तिरस्कृत देह... | ||
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सामाजिकों की दुनिया से | सामाजिकों की दुनिया से | ||
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जबरन बहिष्कृत | जबरन बहिष्कृत | ||
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अख़बारनवीसी के पांडव दरबार में नग्न पड़ी | अख़बारनवीसी के पांडव दरबार में नग्न पड़ी | ||
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यह कार्बन काया- | यह कार्बन काया- | ||
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मुर्दाघर में अधिक-अधिक मुर्दा होती... | मुर्दाघर में अधिक-अधिक मुर्दा होती... | ||
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भाषा के मदारियों की डुगडुगी सुनती... | भाषा के मदारियों की डुगडुगी सुनती... | ||
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कट-कट | कट-कट | ||
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जल-जल | जल-जल | ||
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फुँक-फुँक कर भी | फुँक-फुँक कर भी | ||
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पहुँच नहीं पाती पृथ्वी की गोद तक... | पहुँच नहीं पाती पृथ्वी की गोद तक... | ||
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न बची मैं | न बची मैं | ||
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न देह | न देह | ||
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न शव... | न शव... | ||
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भूमंडलीकरण की रासलीला के बीच | भूमंडलीकरण की रासलीला के बीच | ||
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लावारिस मैं | लावारिस मैं | ||
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अधिक-अधिक मुर्दा होती... | अधिक-अधिक मुर्दा होती... | ||
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झेलती | झेलती | ||
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पोस्ट-पोस्ट पोस्टमार्टम | पोस्ट-पोस्ट पोस्टमार्टम | ||
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उत्तर कोई नहीं | उत्तर कोई नहीं | ||
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न आधुनिक, न उत्तर आधुनिक | न आधुनिक, न उत्तर आधुनिक | ||
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न प्राचीन... | न प्राचीन... | ||
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क्या | क्या | ||
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मुर्दों के किसी प्रश्न का | मुर्दों के किसी प्रश्न का | ||
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कोई उत्तर नहीं होता? | कोई उत्तर नहीं होता? | ||
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22:04, 26 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
यह मेरा
अपमानित, तिरस्कृत शव...
शव भी कहाँ-
जली हडडियों की केस प्रापर्टी,
मुर्दाघर में अधिक-अधिक मुर्दा होती...
चिकित्सा विज्ञान के
शीर्ष पुत्रों की अनुशोधक कैंचियों से बिंधी,
विधि-विधान के जामाताओं का
सन्निपात झेलती...
ढोती
शोध पर शोध पर शोध-
यह तिरस्कृत देह...
सामाजिकों की दुनिया से
जबरन बहिष्कृत
अख़बारनवीसी के पांडव दरबार में नग्न पड़ी
यह कार्बन काया-
मुर्दाघर में अधिक-अधिक मुर्दा होती...
भाषा के मदारियों की डुगडुगी सुनती...
कट-कट
जल-जल
फुँक-फुँक कर भी
पहुँच नहीं पाती पृथ्वी की गोद तक...
न बची मैं
न देह
न शव...
भूमंडलीकरण की रासलीला के बीच
लावारिस मैं
अधिक-अधिक मुर्दा होती...
झेलती
पोस्ट-पोस्ट पोस्टमार्टम
उत्तर कोई नहीं
न आधुनिक, न उत्तर आधुनिक
न प्राचीन...
क्या
मुर्दों के किसी प्रश्न का
कोई उत्तर नहीं होता?