भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKRachna
|रचनाकार=जय गोस्वामी
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<Poem>
ज़मीन छीन लेना ही, अहम काम !
मेरी हड्डी-पसली तोड़ेंगे, भइये?
आज से यही है गणतंत्र लोकतंत्र !आज से यही है गणतंत्र लोकतंत्र !
'''बांग्ला से अनुवाद : सुशील गुप्ता'''
</poem>