"चितकबरे अर्थों के लिए / कुबेरदत्त" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुबेरदत्त }} {{KKCatKavita}} <poem> वहाँ- जहाँ क...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=कुबेरदत्त | |रचनाकार=कुबेरदत्त | ||
}} | }} | ||
− | |||
− | |||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
<poem> | <poem> | ||
पंक्ति 25: | पंक्ति 23: | ||
बेशक, प्रतिबंधित शर्तें | बेशक, प्रतिबंधित शर्तें | ||
− | छद्म को चीरकर उभरती | + | छद्म को चीरकर उभरती हैं |
और संधिपत्र | और संधिपत्र | ||
चिथड़े-चिथड़े हो जाते हैं | चिथड़े-चिथड़े हो जाते हैं |
17:20, 30 अक्टूबर 2011 के समय का अवतरण
वहाँ- जहाँ कि नापाक काली इयत्ताओं पर
एक रक्त वृत्त निरन्तर घूमता है,
भाषा जिसके सम्मान में
अपने सारे मुखौटे उतार कर नत रहती है,
तकलीफ़ जहाँ सभ्य कबूतरी की केंचुल फेंक
नंगी हो जाती है और
चितकबरे अर्थों को सही पहचान देती है
वहाँ मित्र !
समय और पड़ाव
सपाट रास्तों और उजले पदचिन्हों को ठेंगा दिखाकर
कोई मुहूर्त चोरी-चोरी नहीं बीत जाता है !
परछाइयों और आकृतियों में भेद करने वाली
तमाम षड़यंत्र-शृंखलाएँ टूट जाती हैं, और
निनाद और अनहद नाद के फ़र्क पर कोई
बहस नहीं जुड़ती !
बेशक, प्रतिबंधित शर्तें
छद्म को चीरकर उभरती हैं
और संधिपत्र
चिथड़े-चिथड़े हो जाते हैं
बच रहती है केवल नीली सुर्ख़ इबारतें
उसके बाद शोर और ढोल-मजीरे
और श्लोक
सब मिलकर जन्मते हैं शलथ-जीवनहीन माँस-पिंड
अथवा पत्थर की मानवाकृतियाँ
पर, सूरज डूबने से रात होती है,
यह किसने कहा ?