भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रोता हुआ बकरा / शारिक़ कैफ़ी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शारिक़ कैफ़ी |संग्रह= }} {{KKCatNazm}} <poem> वो ...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:55, 4 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
वो बकरा
मेरा मरियल सा बकरा
जिसे बबलू के बकरे ने बहुत मारा था वो बकरा
वो कल ख़्वाब में आया था मेरे
दहाड़े मार कर रोता हुआ
और नींद से उठ कर रोने लगा मैं
खता मेरी थी
मैंने ही लड़ाया था बबलू के बकरे से
उसे मालूम था पिटना है उसको
मगर फिर भी वो उस मोटे से जाकर भिड़ गया था
वो भी कुर्बानी से कुछ देर पहले
मगर पापा तो कहते हैं वो जन्नत में बहुत आराम से होगा
वहां अंगूर खाकर खूब मोटा हो गया होगा
तो क्यूँ रोता है वो ख़्वाबों में आकर
वो क्यूँ रोता है आकर ख़्वाब में ये तो नहीं मालूम मुझको
मुझे तो ये पता है
वो जब जब ख़्वाब में रोता हुआ आया है मेरे
तो अगले रोज़ बबलू को बहुत मारा है मैंने