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"खुशबुए गुल / ”काज़िम” जरवली" के अवतरणों में अंतर

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सूरज का उजाला कभी शब् तक नही पहुंचा ।
 
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जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया ,
 
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हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नही पहुंचा ।।   
 
हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नही पहुंचा ।।   
 
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19:55, 8 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण


जब शाम हुई अपने दीये हमने जलाये ,
सूरज का उजाला कभी शब् तक नही पहुंचा ।

जिस फूल मे खुशबु थी उधर सर को झुकाया ,
हर फूल के मै नाम-ओ-नसब तक नही पहुंचा ।।