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"मै जिंदा हूँ / ”काज़िम” जरवली" के अवतरणों में अंतर
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19:56, 8 नवम्बर 2011 का अवतरण
हवा में ज़हर घुला है मगर मै जिंदा हूँ ,
हर एक सांस सज़ा है मगर मै जिंदा हूँ ।
किसी को ढूंडती रहती हैं पुतलियाँ मेरी,
बदन से रूह जुदा है मगर मै जिंदा हूँ ।
मेरे ही खून से रंगीं है दामने क़ातिल ,
मेरा ही क़त्ल हुआ है मगर मै जिंदा हूँ ।।