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09:18, 9 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
ग्रोथ
सर-जी कौनसी ग्रोथ की आप बात करते हैं, चार बड़े लोगो से जान-पहचान, कुछ बड़ी पार्टियों मैं दुआ-सलाम?
बड़े लोगो की जी हजूरी, छोटो पे कसे लगाम?
नीले गगन से परे एक चारदीवारी, नया नवेला फर्निचर, कुछ हरे काग़ज़?
खुले क्षतिज़ के बदले ये धुँए के बादल, और ये खोखली नकली हँसी?
एक चपरासी की बेटी बीमार, दिल पत्थर, गले मैं सोने का हार?
एक साहिब की कुर्सी, एक दब्बु ले खिसियाई हँसी?
करे मॅनेजरी डाँट फटकार, उपर लगाए मखन, नीचे सुखी रोटी आचार?
हो गयी बड़ी नालेज हुमको, दो ओर दो आठ भी जान गये,
छोटे-बड़े, तेरे-मेरे का फ़र्क भी सीखा बस थोड़ी-सी इंसानियत भूल गये,
बेच रहे हैं दीवानगी को अपनी, लोहे के सुरक्षा क्वॅच के बदले,
के लाल ईंटों ने खरीदा है मेरी जवानी को, के हिसाब करना सीखे हैं अब!
ना ना ना ये ग्रोथ, अपने पास ही रखो, हमारा गुज़ारा है इसके बिना.
हैं कुछ चिंगारिया, जिनको बचा के रखा था, तेरे बर्फ़ीले तूफ़ानो से.
हैं कुछ चमकीले सपने, सफेद मोती जो सहेजे थे, हैं कुछ खवाब तेरी नींदो के परे,
के हमने चुपके से फेक दी थी, तेरी बेहोशी की दवा!!
बिन लीबाज़ के आए थे, बहुत कुछ जोड़ लिया.... है दो आने की रोटी, चार आने की दाल
कहने को दो गज़ ज़मीन काफ़ी थी, अभी तो दो दो घर पे क़ब्ज़ा है!