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मुझे तुम से नहीं
तुम्हारे हौसलों से शिकायत है
तुम्हारी तनी रीढ़ से नाराज़गी है
जो झुकना भूलती जा रही है
मुझे शिकायत है
तुम्हारी उस चाल से
जिसमें मन लुभावन अदा नहीं
उस जिस्म से जिसमें आटे-सा लोच नहीं
जिसमें मदहोशी भी नहीं
मैं तुम्हारी उड़ान से भी
हूँ हैरान कि इतनी ऊँचाई पर भी
आत्मविश्वास से दीप रही हो
पर आजकल तुम मुझे संुदर नहीं लग रही हो
कल तक गज़ भर का घूँघट काढ़े
मौन धरे
सिर झुकाए
बाँदी की तरह बजा लाती थी
मेरा हर हुक्म
आज मेरी आँखों में झाँक रही हो
खड़ी होकर मेरे सामने
प्रश्नसूचक निगाहों से
मुझे ही ताक रही हो
मैं तिलमिला रहा हूँ
तुम्हारी उस सोच से
जो हरसम्भव टूटने से रोकती है तुम्हें
बद से बदतर हालात
सह लेती हो
तुम कैसे सहज रह लेती हो
और हँस लेती हो
जबकि मैं चाहता हूँ तुम्हें रूलाना
रोओ
कि मैं आँसू पोंछूं
फिर सहलाऊँ बहलाऊँ
अपने पाँवों में गिराऊँ
फिर उठाऊँ
अच्छे साथी की मिसाल
समाज में कायम कर पाँऊ मैं।