भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"उलझता जाए है दमन किसी का / मनु भारद्वाज" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Manubhardwaj (चर्चा | योगदान) छो (ग़ज़ल) |
(कोई अंतर नहीं)
|
02:36, 19 नवम्बर 2011 का अवतरण
उलझता जाए है दामन किसी का ख़ुदारा देखिएगा फन किसी का
कहीं जुल्फें संवारी जा रही हैं पुकारे है मुझे दरपन किसी का
किसी के घर पे खुशियों की फिजा है सुलगता है कहीं गुलशन किसी का
मेरे सीने में तुम कहते हो दिल है मुझे लगता है ये मदफन किसी का
हमारा घर, हमारा घर नहीं है किसी की छत तो है आँगन किसी का
न हक छीनो किसी का ऐ लुटेरों न लूटो इस तरह जीवन किसी का
लबों पे आह थी, आँखों में आँसूं 'मनु' गुज़रा है यूँ सावन किसी का