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06:22, 22 नवम्बर 2011
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मजरुह सुल्तानपुरी हिन्दी फिल्मों के एक प्रसिद्ध गीतकार हैं ।मजरूह तरक्की पसंद तहरीक के उर्दू के सबसे बड़े महान शायर थे। उन्होïने अपनी रचनाओï के जरिए देश, समाज और साहित्य को नयी दिशा देने का काम किया है ये लब्बोलुआब है। ये सारांश है गनपत सहाय परास्नातक कालेज मेï 'गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी गजल का अपनी जिंदगी और शायरी के आइने मेï' विषयक राष्ट्रीय सेमिनार का। देश बारे में नजरिया कुछ ऐसा ही था जैसा कि उनका यह गीत कि ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के प्रमुख विश्वविद्यालयोï के शिक्षाविदोï ने इस सेमिनार मेï हिस्सा लिया और कहा कि वे ऐसी शख्सियत थे। जिन्होïने उर्दू को एक नयी ऊंचाई दी है।मोल, जग में रह जाएंगे प्यारे तेरे बोल”।
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा गनपत सहाय कालेज मेï मुशायरों और महफिलों में मिली शोहरत तथा कामयाबी ने एक यूनानी हकीम असरारूल हसन खान को फिल्म जगत का एक अजीम शायर और गीतकार मजरूह सुल्तानपुरी बना दिया। उन्होंने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में करीब 300 फिल्मों के लिए लगभग 4000 गीतों की रचना की। मजरूह सुल्तानपुरी पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया गया। जन्म उत्तरप्रदेश के सुल्तानपुर शहर में 1 अक्टूबर 1919 को हुआ था। उनके पिता एक पुलिस उप-निरीक्षक थे और वे मजरूह सुल्तानपुरी को ऊंची से ऊंची तालीम देना चाहते थे। मजरूह सुल्तानपुरी ने लखनऊ विश्वविद्यालय के तकमील उल तीब कॉलेज से यूनानी पद्धति की उर्दू विभागाध्यक्ष डा.सीमा रिजवी मेडिकल की अध्यक्षता व गनपत सहाय कालेज परीक्षा उर्तीण की उर्दू विभागाध्यक्ष डा.जेबा महमूद और बाद में वे एक हकीम के संयोजन मेï राष्ट्रीय सेमिनार रूप में काम करने लगे। बचपन के दिनों से ही मजरूह सुल्तान पुरी को सम्बोधित शेरो-शायरी करने का काफी शौक था और वे अक्सर सुल्तानपुर में हो रहे मुशायरों में हिस्सा लिया करते हुए इलाहाबाद विश्वविद्यालय थे। इस दौरान उन्हें काफी नाम और शोहरत मिली। उन्होंने अपनी मेडिकल की प्रैक्टिस बीच में ही छोड़ दी और अपना ध्यान शेरो-शायरी की ओर लगाना शुरू कर दिया। इसी दौरान उनकी मुलाकात मशहूर शायर जिगर मुरादाबादी से हुई। वर्ष 1945 में सब्बो सिद्धकी इंस्टीट्यूट द्वारा संचालित एक मुशायरे में हिस्सा लेने मजरूह सुल्तान पुरी मुम्बई आए थे। मुशायरे के उर्दू विभागाध्यक्ष प्रोकार्यक्रम में उनकी शायरी सुन मशहूर निर्माता ए.अली अहमद फातिमी ने कहा मजरूह सुल्तानपुर मेï पैदा आर.कारदार काफी प्रभावित हुए और उनके शायरी मेï यहां उन्होंने मजरूह सुल्तानपुरी से अपनी फिल्म के लिए गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह सुल्तानपुरी ने कारदार साहब की झलक साफ मिलती है। वे इस देश पेशकश को ठुकरा दिया क्योंकि फिल्मों के ऐसी तरक्की पसंद शायर हैï जिनकी वजह लिए गीत लिखना वे अच्छी बात नहीं समझते थे। जिगर मुरादाबादी ने मजरूह सुल्तानपुरी को तब सलाह दी कि फिल्मों के लिए गीत लिखना कोई बुरी बात नहीं है। गीत लिखने से उर्दू मिलने वाली धन राशि में से कुछ पैसे वे अपने परिवार के खर्च के लिए भेज सकते हैं। जिगर मुरादाबादी की सलाह पर मजरूह सुल्तानपुरी फिल्म में गीत लिखने के लिए राजी हो गए। संगीतकार नौशाद ने मजरूह सुल्तानपुरी को नया मुकाम हासिल हुआ। उनकी मशहूर लाइनों 'मै अकेला ही चला थाएक धुन सुनाई और उनसे उस धुन पर एक गीत लिखने को कहा। मजरूह सुल्तान पुरी ने उस धुन पर ‘गेसू बिखराए, जानिबे मंजिल मगर लोग पास आते गये बादल आए झूम के’ गीत की रचना की। मजरूह के गीत लिखने के अंदाज से नौशाद काफी प्रभावित हुए और करवां बनता गया' का जिक्र भी वक्ताओं उन्होंने उन्हें अपनी नई फिल्म ‘शाहजहां’ के लिए गीत लिखने की पेशकश की। इसके बाद मजरूह सुल्तानपुरी और संगीतकार नौशाद की सुपरहिट जोड़ी ने ‘अंदाज’, ‘साथी’, ‘पाकीजा’, ‘तांगेवाला’, ‘धरमकांटा’ और ‘गुड्डू’ जैसी फिल्मों में एक साथ कामकिया। लखनऊ विश्वविद्यालय फिल्म ‘शाहजहां’ के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रोबाद महबूब खान की ‘अंदाज’ और एस.मलिक जादा मंजूर अहमद फाजिल की ‘मेहन्दी’ जैसी फिल्मों में अपने रचित गीतों की सफलता के बाद मजरूह सुल्तानपुरी बतौर गीतकार फिल्म जगत में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गए। अपनी वामपंथी विचार धारा के कारण मजरूह सुल्तानपुरी को कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। कम्युनिस्ट विचारों के कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा। मजरूह सुल्तानपुरी को सरकार ने कहा सलाह दी कि यूजीसी अगर वे माफी मांग लेते हैं, तो उन्हें जेल से आजाद कर दिया जाएगा, लेकिन मजरूह सुल्तानपुरी इस बात के लिए राजी नहीं हुए और उन्हें दो वर्ष के लिए जेल भेज दिया गया। जेल में रहने के कारण मजरूह सुल्तानपुरी के परिवार की माली हालत काफी खराब हो गई। राजकपूर ने उनकी सहायता करनी चाही लेकिन मजरूह पर राष्ट्रीय सेमिनार सुल्तानपुरी ने उनकी जन्मस्थली सुल्तानपुर सहायता लेने से मना कर दिया। इसके बाद राजकपूर ने उनसे एक गीत लिखने की पेशकश की। मजरूह सुल्तानपुरी ने ‘एक दिन बिक जाएगा माटी के मोल’ गीत की रचना की, जिसके एवज में आयोजित करके राजकपूर ने उन्हें एक नयी दिशा दी हजार रूपए दिए। लगभग दो वर्ष तक जेल में रहने के बाद मजरूह सुल्तानपुरी ने एक बार फिर से नए जोशो-खरोश के साथ काम करना शुरू कर दिया। वर्ष 1953 मे प्रदर्शित फिल्म ‘फुटपाथ’ और ‘आरपार’ में अपने रचित गीतों की कामयाबी के बाद मजरूह सुल्तानपुरी फिल्म इंडस्ट्री में पुन: अपनी खोई हुई पहचान बनाने में सफल हो गए। मजरूह सुल्तानपुरी के सिने करियर में उनकी जोड़ी संगीतकार एस.डी.बर्मन के साथ भी खूब जमी। एस.डी.बर्मन और मजरूह सुल्तानपुरी की जोड़ी वाली फिल्मों में ‘पेइंग गेस्ट’ ‘नौ दो ग्यारह’, ‘सोलवां साल’, ‘काला पानी’, ‘चलती का नाम गाड़ी’, ‘सुजाता’, बंबई का बाबू’, ‘बात एक रात की’, ‘तीन देवियां’, ‘ज्वैलथीफ’ और ‘अभिमान’ जैसी सुपरहिट फिल्में शामिल हैं। मजरूह सुल्तान पुरी के महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए वर्ष 1993 में उन्हें फिल्म जगत के सर्वोच्च सम्मान ‘दादा साहब फाल्के पुरस्कार’ से नवाजा गया। इसके अलावा वर्ष 1964 मे प्रदर्शित फिल्म ‘दोस्ती’ में अपने रचित गीत ‘चाहूंगा मैं तुझे सांझ सवेरे’ के लिए वह सर्वश्रेष्ठ गीतकार के ‘फिल्म फेयर’ पुरस्कार से सम्मानित किए गए। जाने-माने निर्माता-निर्देशक नासिर हुसैन की फिल्मों के लिए मजरूह सुल्तान पुरी ने सदाबहार गीत लिखकर उनकी फिल्मों को सफल बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। मजरूह सुल्तानपुरी ने सबसे पहले नासिर हुसैन की फिल्म ‘पेइंग गेस्ट’ के लिए सुपरहिट गीत लिखा। उनके सदाबहार गीतों के कारण ही नासिर हुसैन की ज्यादातार फिल्में आज भी याद की जाती है।इन फिल्मों में खासकर ‘फिर तीसरी मंजिल’, ‘बहारों के सपने’, ‘प्यार का मौसम’, ‘कारवां’, ‘यादों की बारात’, ‘हम किसी से कम नहीं’ और ‘जमाने को दिखाना है’ जैसी कई सुपरहिट फिल्में शामिल हैं। मजरूह सुल्तान पुरी ने चार दशक से भी ज्यादा लंबे सिने करियर में लगभग 300 फिल्मों के लिए लगभग 4000 गीतों की रचना की। अपने रचित गीतों से श्रोताओं को भावविभोर करने वाले महान शायर और गीतकार 25 मई 2000 को इस दुनिया को अलविदा कह गए।
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