भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रामदास / रघुवीर सहाय" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 6: | पंक्ति 6: | ||
{{KKPrasiddhRachna}} | {{KKPrasiddhRachna}} | ||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
− | <poem>चौड़ी सड़क गली पतली थी | + | <poem> |
+ | चौड़ी सड़क गली पतली थी | ||
दिन का समय घनी बदली थी | दिन का समय घनी बदली थी | ||
रामदास उस दिन उदास था | रामदास उस दिन उदास था | ||
पंक्ति 28: | पंक्ति 29: | ||
हाथ तौल कर चाकू मारा | हाथ तौल कर चाकू मारा | ||
छूटा लहू का फव्वारा | छूटा लहू का फव्वारा | ||
− | कहा नहीं था | + | कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी? |
− | भीड़ ठेल कर लौट | + | भीड़ ठेल कर लौट गया वह |
− | मरा | + | मरा पड़ा है रामदास यह |
'देखो-देखो' बार बार कह | 'देखो-देखो' बार बार कह | ||
लोग निडर उस जगह खड़े रह | लोग निडर उस जगह खड़े रह | ||
लगे बुलानें उन्हें, जिन्हें संशय था हत्या होगी। | लगे बुलानें उन्हें, जिन्हें संशय था हत्या होगी। | ||
</poem> | </poem> |
12:32, 23 नवम्बर 2011 का अवतरण
चौड़ी सड़क गली पतली थी
दिन का समय घनी बदली थी
रामदास उस दिन उदास था
अंत समय आ गया पास था
उसे बता, यह दिया गया था, उसकी हत्या होगी।
धीरे धीरे चला अकेले
सोचा साथ किसी को ले ले
फिर रह गया, सड़क पर सब थे
सभी मौन थे, सभी निहत्थे
सभी जानते थे यह, उस दिन उसकी हत्या होगी।
खड़ा हुआ वह बीच सड़क पर
दोनों हाथ पेट पर रख कर
सधे कदम रख कर के आये
लोग सिमट कर आँख गड़ाये
लगे देखने उसको, जिसकी तय था हत्या होगी।
निकल गली से तब हत्यारा
आया उसने नाम पुकारा
हाथ तौल कर चाकू मारा
छूटा लहू का फव्वारा
कहा नहीं था उसने आखिर उसकी हत्या होगी?
भीड़ ठेल कर लौट गया वह
मरा पड़ा है रामदास यह
'देखो-देखो' बार बार कह
लोग निडर उस जगह खड़े रह
लगे बुलानें उन्हें, जिन्हें संशय था हत्या होगी।