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अटकी मिली | अटकी मिली |
23:45, 5 अगस्त 2008 का अवतरण
धब्बों भरी एक चीख़
अटकी मिली
मृतक के स्वरयंत्र में
टूटे हुए
शब्दों
में
लिपटी
जो जकड़ा था इर्द-गिर्द उसके
श्लेष्मा की तरह
वह किश्तों में निगला
भय था लगभग प्रस्तरीभूत
जिसने उसके सारे कहे को
नागरिक बनाया था जीवन भर
उसके विराट और
महान
लोकतंत्र की सेवा में
(रचनाकाल : 1967)