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"खेंची लबों ने आह के सीने पे आया हाथ / ‘अना’ क़ासमी" के अवतरणों में अंतर

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('खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ । बस पर सवार दूर से...' के साथ नया पन्ना बनाया)
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19:09, 26 नवम्बर 2011 का अवतरण

खैंची लबों ने आह कि सीने पे आया हाथ । बस पर सवार दूर से उसने हिलाया हाथ ।

महफ़िल में यूँ भी बारहा उसने मिलाया हाथ । लहजा था ना-शनास[1] मगर मुस्कुराया हाथ ।

फूलों में उसकी साँस की आहट सुनाई दी, बादे सबा[2] ने चुपके से आकर दबाया हाथ ।

यँू ज़िन्दगी से मेरे मरासिम[3] हैं आज कल, हाथों में जैसे थाम ले कोई पराया हाथ ।

मैं था ख़मोश जब तो ज़बाँ सबके पास थी, अब सब हैं लाजवाब तो मैंने उठाया हाथ ।

शब्दार्थ:

↑ अपरिचित ↑ सुबह की ख़ुशबूदार हवा ↑ तअल्लुक़ात