"आते जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे / आनंद बख़्शी" के अवतरणों में अंतर
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कितने अंजान लोग मिल जाते हैं | कितने अंजान लोग मिल जाते हैं |
17:28, 27 नवम्बर 2011 के समय का अवतरण
आते जाते खूबसूरत आवारा सड़कों पे
कभी कभी इत्तेफ़ाक़ से
कितने अंजान लोग मिल जाते हैं
उन में से कुछ लोग भूल जाते हैं
कुछ याद रह जाते हैं
आवाज़ की दुनिया के दोस्तों
कल रात इसी जगह पे मुझको
किस क़दर ये हसीं ख़याल मिला है
राह में इक रेशमी रुमाल मिला है
जो गिराया था किसी ने जान कर
जिस का हो ले वो जाये पहचान कर
वरना मैं रख लूँगा उस को अपना जान कर
किसी हुस्न-वाले की निशानी मान कर, निशानी मान कर
हँसते गाते लोगों की बातें ही बातें में
कभी कभी इक मज़ाक से कितने जवान किस्से बन जाते हैं
उन किस्सों में चन्द भूल जाते हैं
चन्द याद रह जाते हैं
उन में से कुछ लोग ...
तक़दीर मुझ पे महरबान है
जिस शोख की ये दास्तान है
उस ने भी शायद ये पैग़ाम सुना हो
मेरे गीतों में अपना नाम सुना हो
दूर बैठी ये राज़ वो जान ले
मेरी आवाज़ को पहचान ले
काश फिर कल रात जैसी बरसात हो
और मेरी उस की कहीं मुलाक़ात हो
लम्बी लम्बी रातों में नींद नहीं जब आती
कभी कभी इस फ़िराक़ से कितने हसीं ख़्वाब बन जाते हैं
उन में से कुछ ख़्वाब भूल जाते हैं
कुछ याद रह जाते हैं
उन में से कुछ लोग ...